राधा- कृष्णा विरह
राधा- कृष्णा विरह
देवी रूक्मिणी का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्री कृष्ण
का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा वह भी
अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थी. राधा जी के जन्म में और देवी रूक्मिणी के
जन्म में एक अन्तर यह है कि देवी रूक्मिणी का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था
और राधा जी का शुक्ल पक्ष में. राधा जी को नारद जी के श्राप के कारण विरह
सहना पड़ा और देवी रूक्मिणी से कृष्ण जी की शादी हुई. राधा और रूक्मिणी यूं
तो दो हैं परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं.
रामचरित
मानस के बालकाण्ड में जैसा कि तुलसी दास जी ने लिखा है कि नारद जी को यह
अभिमान हो गया था कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर लिया है. नारद जी की
परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया.
उस नगर के राजा ने अपनी रूपवती पुत्री के लिए स्वयंवर का आयोजन किया.
स्वयंर में नारद मुनि भी पहुचे और कामदेव के वाणों से घायल होकर राजकुमारी
को देखकर मोहित हो गये.
राजकुमारी से विवाह की इच्छा लेकर वह भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे
निवेदन करने लगे कि प्रभु मुझे आप अपना सुन्दर रूप प्रदान करें क्योंकि
मुझे राजकुमारी से प्रेम हो गया है और मैं उससे विवाह की इच्छा रखता हूं.
नारद जी के वचनों को सुनकर भगवान मुस्कुराए और कहा तुम्हें विष्णु रूप देता
हूं. जब नारद विष्णु रूप लेकर स्वयंवर में पहुंचे तब उस राजकुमारी ने
विष्णु जी के गले में वर माला डाल दी. नारद जी वहां से दु:खी होकर चले आ
रहे थे. मार्ग में उन्हें एक जलाशय दिखा जिसमें उन्होंने चेहरा देखा तो समझ
गये कि विष्णु भगवान ने उनके साथ छल किया है और उन्हें वानर रूप दिया है.
नारद क्रोधित होकर वैकुण्ड पहुंचे और भगवान को बहुत भला बुरा कहा और उन्हें
पत्नी का वियोग का वियोग सहना होगा यह श्राप दिया. नारद जी के इस श्राप की
वजह से रामावतार में भगवान रामचन्द्र जी को सीता का वियोग सहना पड़ा था और
कृष्णावतार में देवी राधा का.
वास्तव में देवी राधा और रूक्मिणी एक ही हैं अत: रूक्मिणी अष्टमी का महत्व
वही है जो राधाष्टमी का. जो इनकी उपासना करता है उन्हें देवी लक्ष्मी की
उपासना का फल प्राप्त होता है. श्री कृष्ण ने देवी रूक्मिणी के प्रेम और
पतिव्रत को देखते हुए उन्हें वरदान दिया कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष कृष्ण
पक्ष की अष्टमी के दिन आपका व्रत और पूजन करेगा और पौष मास की कृष्ण अष्टमी
को व्रत कर के उसका उद्यापन यानी समापन करेगा उसे कभी धनाभाव का सामना
नहीं करना होगा. जो आपका भक्त होगा उसे देवी लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त
होगी.
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आचार्य सोनू तिवारी जी
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