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★★श्री राधा रानी कृपा-कटाक्ष समूह में आप भक्तो आपका स्वागत ...... सभी देश वासिओ को होली की बहुत बहुत शुभकामनाए


भगवत चिंतन प्रतिदिन अपडेट जरूर पढ़े (BHAGWAT CHINTAN )


 आज का भगवद चिन्तन, 21-6-2014
 सज्जन बनो लेकिन सक्रिय सज्जन बनो। आज समस्या है कि सज्जनता निष्क्रिय है और दुर्जनता सक्रिय है। रास्ट्र का जितना नुकसान दुष्टों की दुष्टता से नही हुआ जितना सज्जनों की निष्क्रियता से हुआ है।  दुष्टों की दुष्टता समस्या नही है, अच्छे लोगों की निष्क्रियता समस्या है। स्वामी राम कहा करते थे कि अच्छे लोगों से ज्यादा बुरे लोग संकल्पी होते है। वो कभी निराश नहीं होते। चोर चोरी करने जाता है कई दिन तक कुछ ना भी मिले तो भी वह निराश नहीं होता।  सज्जन लोग जल्दी थक जाते हैं। हमारा जन्म ही इसलिए हुआ है ताकि हम संसार को सुंदर बना सकें। कुछ सृजन कर सकें, कुछ समाज को दे सकें। जब तक सफल ना हो जाओ हार मत मानना, सक्रिय रहना। सेवा से ही परमात्मा मिलते हैं।

 आज का भगवद चिन्तन, 20-6-2014
 सत्य को जानने की पहली शर्त है खुद को जान लेना। खुद को जाने बिना परम की यात्रा हो ही ना पायेगी। खुद को जानने का अर्थ है (अन्तर्मुखी) हो जाना, माने - अपने भीतर झाँकना। सदियों से इंसान बहिर्मुखी जीवन ही जीता जा रहा है।  इंसान को सबके दोषों के बारे में खबर है पर आश्चर्य है कि ना तो उसे खुद के दोषों के बारे में पता है और ना ही वह जानने को उत्सुक है। तुम जगत में किसी को भी जानने का प्रयत्न मत करो बस खुद को जानो। अशांति - विषाद का कारण ही यही है कि भीतर गंदगी भरी पड़ी है और तुमने दूर करने का प्रयत्न भी नहीं किया है।  भीतर की पवित्रता ही परमात्मा की प्राप्ति की दिशा है। याद रखना जो भी परमात्मा की दिशा के प्रतिकूल जाता है वह एक दिन नष्ट हो जाता है। जो भी परमात्मा की और बढ़ता है वह आनन्द की अनुभूतियाँ, आंतरिक सौन्दर्य और अमृत से पूरी तरह भर जाता है। अन्तर्मुखी साधक को ही सत्य उपलब्ध होता है।

 आज का भगवद चिन्तन, 19-6-2014
 यक्ष गीता में युधिष्ठर से यक्ष ने एक प्रश्न किया है कि दुनिया में सबसे मुश्किल क्या है ? धर्मराज ने बड़ा सुन्दर जबाब दिया है कि सबसे मुश्किल है किसी भी कार्य को प्रारम्भ कर देना।  शुरुआत करना ही सबसे मुश्किल है। आप दृढ संकल्प के साथ जब खड़े हो जाते हो तो आधा कार्य तो समझो तभी हो जाता है। आदमी बिचारता बहुत है। कार्य में तो 5% ऊर्जा ही लगती है, 95% तो सोचने में और प्लानिंग करने में लग जाती है। कर्म करते समय ही तो पता चलेगा कि और क्या-क्या सुधार किया जा सकता है ?  नए कार्य करो लेकिन समय वद्धता जरूर रखो। कब तक कार्य को पूरा करना है। नहीं तो इतने कार्य पैंडिंग हो जायेंगे कि फिर कोई भी कार्य ढंग से नहीं हो पायेगा। क्रिया से आदमी उतना नहीं थकता जितना ये बिचार करके थक जाता है कि उसे क्या-क्या करना है। जिन्दगी मिली थी कुछ करने के लिए। लोगों ने सोचने में ही गुजार दी॥

आज का भगवद चिन्तन, 17-6-2014
यह कैसी बिडम्बना है कि मानव , मानव पर तो विश्वास कर रहा है पर जिस दयालु प्रभु ने मानव को पैदा किया उस पर विश्वास नहीं कर पा रहा है। ये शरीर , मन, वुद्धि ,विचार , ऊर्जा देने वाले तो श्री हरि ही हैं। आदमी सुबह जगता है घर के प्रत्येक सदस्य को " गुड मोर्निंग " बोलता है लेकिन जिस प्रभु के कारण गुड मोर्निंग कहने के लिए ये जीवन मिला , उसे बिलकुल भी स्मरण नहीं कर रहा। तुम जगत के रूठने का बिलकुल भी भय मत करो , प्रभु ना रूठें यह ध्यान रखो। हांड- मांस के पुतलों का विस्मरण हो जाये कोई बात नहीं परमात्मा का विस्मरण ना हो। तुम लक्ष्मी के पीछे मत भागो , नारायण को पकड़ लोगे तो लक्ष्मी दौड़ी चली आएगी। माया को हर कोई भजे , हरि को भजे ना कोय । कह कबीर हरि को भजे , माया चेरी ( दासी ) होय ॥

आज का भगवद चिन्तन, 16-6-2014
 काम, क्रोध, मद, मत्सर इन सबको आपने पैदा नहीं किया यह प्रकृति प्रद्दत हैं। जन्म से ही जीव इनको लेकर पैदा हुआ है। महत्वपूर्ण यह है कि इनको नियंत्रित करने वाला, हांकने वाला, निर्देशित करने वाला अगर सही है तो, जो चीज कल विनाश कर रही थी आज वह विकास और कल्याण भी कर सकती है।  बात यह नहीं कि जिन्दगी में कुछ पाने के लिए तेज दौड़ा जाए, अपितु यह है कि हम सही मार्ग पर चलें। और चलने वाला होश में भी हो। लोभ होना चाहिए पर इसलिए कि ज्यादा धन कमाकर हम परमार्थ करें, दीन-दुखियों की और गौमाता की सेवा कर सकें।  क्रोध हो पर दूसरों पर नहीं स्वयं की दुष्ट प्रवृत्तियों पर, स्वयं के गलत आचरण पर। प्रतिस्पर्धा हो सत्कर्म करने की।मोह हो भगवान की कथा से, संतों से, वैष्णवों से। विवेक से लोभ-क्रोध और मोह को शासित करोगे तो ये वासना नहीं उपासना तक पहुँचा देंगे। !!

राधे राधे , आज का भगवद चिन्तन,   15-6-2014
क्या आपको पता है कि आपके भीतर कितनी शक्ति, कितनी सामर्थ्य छिपी पढ़ी है। दुनिया की कोई भी मशीन आज तक नहीं जान पाई। अपनी शक्ति का एक क्षुद्र भाग ही अभी तक आप प्रगट कर पाए हो ? 
इन्सान के पास जितनी शक्ति , जितने बिचार , जितने नये सृजन करने की सामर्थ्य बिद्यमान है वह अन्य किसी भी जीव के पास नहीं है। सैकड़ों बार आप असफल या चोट खा सकते हो लेकिन स्वयं में और ईश्वर में विश्वास रखने के कारण आप संसार को जरूर कुछ देने में सफल होंगे। 
समाज को कुछ ऐसे मनुष्यों की आवश्यकता है जो परमार्थ के यज्ञ में निरन्तर संलग्न रहकर इस समाज का भला कर सकें। जब तुम कहते हो मै क्या कर सकता हूँ ? तब तुम भगवान् का भी उपहास उड़ाते हो। कुछ भी तो ऐसा नहीं जो तुम्हारे द्वारा ना हो सके। दृढ इच्छा की और अपनी शक्तियों को पहचानने की जरूरत है बस

 5 आज का भगवद चिन्तन, 14-6-2014 
 भगवान कृष्ण ने कहीं भी पलायन की बात नहीं की, डटे रहने की बात कही है। उन्होंने अर्जुन को कहा जीवन एक संघर्ष है। चुनौती है, युद्ध है, परीक्षा है, इसका सामना तो करना पड़ेगा। जब तक जीवन है संघर्ष तो चलता रहेगा। परिस्थिति से भाग मत , उसका सामना कर। निराशा तो मृत्यु है। दुनिया में ज्यादातर लोग इसलिए भी हार जाते हैं क्योंकि वो समय से पहले ही मैदान छोड़ देते हैं। गीता कहती है कि चलते रहो । खुद तृप्त हो जाओ तो दूसरों के लिए चलो। तुम्हारा उद्देश्य केवल एक देह और एक परिवार के लिए नहीं है। आपको पूरे संसार के लिए कार्य करना है। तुम्हारा जन्म संसार को देने के लिए ही हुआ है। विना किसी अपेक्षा के सारे जीवों में परमात्मा के दर्शन करते हुए देने के यज्ञ में लग जाओ। एक ना एक दिन तो सब बैसे भी तुमको छोड़ना ही है।


4 आज का भगवद चिन्तन, 13-6-2014 

 सफलता प्राप्त करने एवं ऊंचाईयों को प्राप्त करने हेतु सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो। यह सब स्वयं पर विश्वास से ही संभव हो पायेगा। तुम संसार में बहुत लोगों पर तो विश्वास रखते हो फिर स्वयं के प्रति हीनभाव क्यों ? इस संसार में जो कुछ भी है वो इंसान के लिए है। मै सब कुछ प्राप्त कर सकता हूँ इस बिचार के साथ कड़ा परिश्रम करो। असफलता की चिंता मत करो, वे स्वाभाविक हैं। असफलताएँ ही तो निरन्तर आगे बढ़ने को प्रेरित करती हैं। इंसान के पास अद्भुत सामर्थ्य है। ऐसी सामर्थ्य किसी और जीव के पास नहीं है। तुमने आँखों को बंद कर रखा है और सदियों से अँधेरा-अँधेरा चिल्ला रहे हैं। ये समझ लो कि आँखे खोलते ही प्रकाश हो जायेगा। तुम बिलकुल भी कमजोर नहीं हो , सामर्थ्यवान हो। हिम्मत मत हारो, एक बार जबरदस्त परिश्रम करो, सब कुछ तुम्हारा है। : राधे राधे ,

3 आज का भगवद चिन्तन, 12-6-2014 
 भोजन भोजन चिल्लाने से क्या भूख मिट जाएगी ? पानी-पानी चिल्लाने से क्या प्यास मिट जाएगी ? प्रभु-प्रभु रटने से क्या हमें ईस्वर की प्राप्ति हो जाएगी। धर्म की चर्चा करने से नहीं धर्म का आचरण करने से दैवीय अनुभूतियाँ होंगी। आज जिन्हें भी देखो धर्म की बातें कर रहे हैं , धर्म पालन नहीं कर रहे। लोग शब्दों की स्तुतियों से परमात्मा को रिझा रहे हैं। तुम आचरण की मौन स्तुति से प्रभु को रिझाओ। आचरण की सुगन्ध जल्दी वहाँ पहुँचती है। पश्चिम की समस्या है उन्हें पता ही नहीं है कि किस मार्ग पर चलना है ? शास्त्र तुम्हें मार्ग दिखा रहे हैं उन्हें स्वीकार कर आगे बढ़ो। अपना कल्याण करो ,जगत का कल्याण करो और परमात्मा की कृपा प्राप्त करो। अपने द्वारा संसार को कुछ देकर जरूर जाना, पशुओं की तरह दुनिया से वापिस मत चले जाना।  राधे राधे

2 आज का भगवद चिन्तन, 9-6-2014 
 हम जैसा बिचार करते है बैसे बन जाते हैं। जैसा प्रचार करते हैं बैसा आचार (आचरण) करने लगते हैं। नकारात्मक बातों को ना तो सोचो और ना ही उनकी मार्केटिंग करो। नकारात्मक चर्चा का दूसरों पर तो असर होता ही है , सबसे ज्यादा प्रभावित तो आप स्वयं होते हो। जीवन के वास्तविक सौन्दर्य से बंचित रह जाते हो और तुम्हारे भीतर एक ऐसा निराशा का वातावरण निर्मित हो जाता है जिससे तुम्हारा पूरा विकास अवरुद्ध हो जाता है। समस्याएं हैं ये सत्य है पर समाधान तो हमें ही खोजना होगा। हमारे जैसे बहुत लोगों से ही तो समाज निर्मित हुआ है। अन्धकार को तो सब कोस रहे हैं पर दीपक जलाने की हिम्मत कौन करेगा ? अच्छा और सकारत्मक सोचो ताकि ये जीवन जीते जी स्वर्ग बन सके। 
राधे........ राधे  

 आज का भगवद चिन्तन, 8-6-2014 
परमात्मा तो प्रत्येक पल मौजूद हैं ,तुम अपनी बात करो कि प्रार्थना करते समय तुम मौजूद हो कि नहीं। प्रार्थना सच्ची और दिल से होती है तो प्रभु खम्भे से भी प्रगट हो जाते हैं। प्रभु को खोजने की जरूरत नहीं है अपने को खोने की जरूरत है। खोजी जिस दिन स्वयं खो जाता है उस दिन परमात्मा स्वयं आ जाता है। परमात्मा तो मिले हुए हैं तुम्हें खबर नहीं है, वो तो नित्य हैं, कण-कण में हैं। पर अज्ञान के कारण तुम्हें दूरी प्रतीत होती है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कुछ दिया नहीं था केवल स्मरण कराया था। ""पानी में मीन प्यासी सखी मोहे सुन-सुन आवे हांसी। प्राप्त को क्या प्राप्त करना ? संतों के चरणों में बैठकर प्रेम और भक्ति प्राप्त करके आनंद लेना है बस। राधा स्नेह बिहारी लाल की जय हो



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सोनू  तिवारी  जी 
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