जानिए महाभारत में लिखी खास बातें ( रोजाना अपडेट कथा )
1- जब युधिष्ठिर आदि पांडव बदरिकाश्रम में रह रहे थे,
तभी एक दिन वहां एक राक्षस ब्राह्मण के वेष में आकर रहने लगा। उसका नाम
जटासुर था। वह राक्षस पांडवों के शस्त्रों और द्रौपदी का हरण करना चाहता
था। एक दिन जब भीमसेन आश्रम में नहीं थे, मौका पाकर वह राक्षस अपने मूल
स्वरूप में आकर युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव, द्रौपदी और सारे शस्त्रों का हरण
कर ले जाने लगा। पता चलने पर भीमसेन उस राक्षस का पकड़ने दौड़े।
थोड़ी दूर पर ही भीमसेन ने उस राक्षस को पकड़ लिया। भीमसेन और जटासुर
के बीच भयंकर युद्ध हुआ। पहले तो दोनों में बाहुयुद्ध हुआ। इसके बाद दोनों
ने वृक्ष उखाड़ कर एक-दूसरे पर हमला कर दिया। अंत में भीमसेन के हाथों
जटासुर मारा गया। इसके बाद सभी पांडव, द्रौपदी के साथ आश्रम लौट आए। इस
प्रकार वहां रहते हुए पांडवों के वनवास के पांच वर्ष पूर्ण हो गए।
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2- एक दिन जब भीमसेन एकांत में बैठे थे। तब द्रौपदी ने
उनसे कहा कि इस पर्वत पर अनेक राक्षस निवास करते हैं। यदि वे सब यह पर्वत
छोड़कर भाग जाएं तो कैसा रहे। भीमसेन द्रौपदी की बात समझ गए और अपने शस्त्र
उठाकर गंधमादन पर्वत पर बेखटके आगे बढ़ने लगे। पर्वत की चोटी पर जाकर वे
कुबेर के महल को देखने लगे। तभी भीमसेन ने अपने शंख से भयानक ध्वनि की। शंख
की ध्वनि सुन यक्ष और राक्षसों ने भीमसेन पर हमला कर दिया। भीमसेन ने
अकेले ही उन सभी को पराजित कर दिया।
वहीं कुबेर का मित्र मणिमान नाम का राक्षस रहता था। उसके और भीम के
बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। भीमसेन ने उसका भी वध कर दिया। युद्ध की आवाजें
सुनकर युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव भी भीमसेन के पास पहुंच गए। जब कुबेरजी को
पता चला कि भीमसेन ने एक बार फिर उनके क्षेत्र में आकर उनके सेवकों को मारा
है तो बहुत क्रोधित हो गए और अपने रथ पर सवार होकर उस ओर चल दिए। वहां
पहुंचकर जब कुबेरजी ने युधिष्ठिर को देखा तो उनका क्रोध शांत हो गया।
उन्होंने कहा कि ये राक्षस तो अपने काल से ही मरे हैं। भीमसेन तो सिर्फ
निमित्त मात्र हैं। कुबेर ने बताया कि आपका भाई अर्जुन अस्त्रविद्या में
निपुण हो गया है और वह जल्दी आप लोगों से मिलेगा। पांडवों ने वह रात
कुबेरजी के महल में ही बिताई।
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3- सुबह होने पर पांडव पुन: महर्षि आष्र्टिषेण के आश्रम लौट आए और वहीं सुखपूर्वक निवास करने लगे। इधर, अर्जुन देवताओं से अस्त्रविद्या सीख कर और देवराज इंद्र से आज्ञा लेकर प्रसन्नतापूर्वक गंधमादन पर्वत लौट आए। अर्जुन देवराज इंद्र के रथ से पर्वत पर पहुंचे। अर्जुन को देखकर युधिष्ठिर, भीमसेन, नकुल, सहदेव व द्रौपदी सहित अन्य ऋषि-मुनि बहुत प्रसन्न हुए। अर्जुन ने संक्षेप में महादेव से युद्ध व अपने स्वर्ग प्रवास की बहुत-सी रोचक बातें अपने भाइयों को बताई। अगले दिन जब सभी पांडव उठे, उसी समय वहां देवराज इंद्र आ गए और उन्होंने कहा कि अर्जुन ने उनसे सावधानीपूर्वक सब शस्त्र प्राप्त कर लिए हैं। अब इससे कोई नहीं जीत सकता। उन्होंने पांडवों से काम्यक वन लौट जाने को कहा। ऐसा कहकर देवराज इंद्र पुन: स्वर्ग लौट गए।
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4- अर्जुन के स्वर्ग से लौटने पर पांडवों ने थोड़ा और समय गंधमादन पर्वत पर बिताया। अर्जुन वहां रहकर अस्त्र चलाने का अभ्यास किया करते थे। इस तरह चार वर्ष और बीत गए। पहले 6 और बाद में 4 वर्ष। इस प्रकार पांडवों के वनवास के कुल 10 वर्ष सूखपूर्वक बीत गए। इसके बाद पांडवों ने आगे की यात्रा शुरू की। चीन, तुषार, दरद और कुलिंद देशों को पार कर पांडव राजा सुबाहु के राज्य में पहुंचे। यहां पांडवों ने एक वर्ष व्यतीत किया। आगे की यात्रा करते हुए पांडव काम्यक वन पहुंच गए और वहीं रहने लगे।
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5- जब भगवान श्रीकृष्ण को पता चला कि पांडव काम्यक वन
में रह रहे हैं तो वे उनसे मिलने आए। भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनकी पत्नी
सत्यभामा भी थीं। श्रीकृष्ण पांडवों से बड़े प्रेम से मिले। जब पांडवों और
श्रीकृष्ण में चर्चा चल रही थी, उस समय सत्यभामा और द्रौपदी भी बातें कर
रहीं थीं। बातों ही बातों में सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा कि तुम्हारे पति
बहुत ही शूरवीर हैं, तुम इन सभी के साथ कैसा व्यवहार करती हो, जिससे वे
तुम पर कभी क्रोधित नहीं होते और सदैव तुम्हारे वश में रहते हैं।
सत्यभामा की बात सुनकर द्रौपदी ने बताया कि वह अहंकार, काम, क्रोध को
छोड़कर पांडवों की सेवा करती है। कटु वचन नहीं बोलती, असभ्यता से खड़ी
नहीं होती, बुरी बातें नहीं सुनती, बुरी जगहों पर नहीं बैठती। देवता,
मनुष्य, गंधर्व, धनी अथवा रूपवान, कैसा भी पुरुष हो, पांडवों के अतिरिक्त
और किसी के प्रति उसका मन नहीं झुकता। अपने पतियों के भोजन किए बिना भोजन
नहीं करती। उनके स्नान किए बिना स्नान नहीं करती और उनके बैठे बिना स्वयं
नहीं बैठती।
द्रौपदी ने कहा कि वह घर के बर्तनों को मांज-धोकर साफ रखती है,
स्वादिष्ट भोजन बनाती है। पतियों को समय पर भोजन कराती है। घर को साफ रखती
है। बातचीत में भी किसी का तिरस्कार नहीं करती। कुलटा स्त्रियों के पास
नहीं फटकती। दरवाजे पर बार-बार जाकर खड़ी नहीं होती। आलस्य से दूर रहती है।
वह अपने पतियों से अच्छा भोजन नहीं करती, उनकी अपेक्षा अच्छे वस्त्राभूषण
नहीं पहनती और न कभी अपनी सास से वाद-विवाद करती है। जिस समय महाराज
युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में शासन करते थे, उस समय जो कुछ आमदनी, व्यय और बचत
होती थी, उस सबका विवरण अकेली ही रखती थी। इस प्रकार पत्नी के लिए
शास्त्रों में जो-जो बातें बताई गई हैं, वह उन सबका पालन करती है।
6- इसके बाद द्रौपदी ने सत्यभामा को पति के मन को अपने
वश में करने का सरल मार्ग बताया- पत्नी के लिए पति के समान कोई दूसरा
देवता नहीं है। जब तुम्हारे कानों में पतिदेव की आवाज पड़े तो तुम आंगन में
खड़ी होकर उनके स्वागत के लिए तैयार रहो और जब वे भीतर आ जाएं तो तुरंत ही
आसन और पैर धोने के लिए जल देकर उनका सत्कार करो। पति की बातों को गुप्त
रखो।
पति के प्रियजनों का खास ध्यान रखो। कुलीन, दोषरहित और सती स्त्रियों
के साथ ही मेल-जोल रखो। यदि पति काम के लिए दासी को आज्ञा दें तो तुम स्वयं
ही उठकर उनके सब काम करो। जो कोई भी पति से वैर रखते हों, ऐसे लोगों से
दूर रहो। सब तरह से अपने पतिदेव की सेवा करो। इससे तुम्हारे यश और सौभाग्य
में वृद्धि होगी।
इसके बाद सत्यभामा अपने पति श्रीकृष्ण के साथ पुन: द्वारका लौट गईं।
7- इसके बाद पांडव द्वैतवन के समीप पवित्र सरोवर पर आकर रहने लगे। यहां रहकर पांडव ब्राह्मणों की सेवा में लगे रहते। पांडव द्वैतवन में आकर रहने लगे हैं यह बात शकुनि को भी पता लग गई। उसने जाकर यह बात कर्ण और दुर्योधन को भी बताई और कहा कि क्यों न हम खूब ठाट-बाट से द्वैतवन चलें, जिसे देखकर पांडवों को जलन होने लगे। शकुनि की बात सुनकर दुर्योधन ने कर्ण से कहा कि कोई ऐसा उपाय सोचो कि महाराज धृतराष्ट्र हमें द्वैतवन जाने की आज्ञा दे दें। दुर्योधन की बात सुनकर कर्ण आदि सभी किसी तरह द्वैतवन जाने की योजना के बारे में विचार करने लगे।
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8- अगले दिन कर्ण ने दुर्योधन को बताया कि इन दिनों
आपकी गायें द्वैतवन में ही हैं और उनकी देखभाल करने वाले चरवाहे भी वहीं
निवास कर रहे हैं। हम महाराज धृतराष्ट्र को यह बात बताएंगे और अपनी गायों
को देखने, गिनती करने और उनकी स्थिति देखने के बहाने द्वैतवन आसानी से जा
पाएंगे। सभी को कर्ण का यह सुझाव पसंद आया।
यह बात जब दुर्योधन ने महाराज धृतराष्ट्र को बताई तो उन्होंने कहा कि-
इस समय पांडव भी द्रौपदी सहित द्वैतवन में निवास कर रहे हैं। यदि वन में
तुम्हारा और उनका आमना-सामना हो गया तो वे निश्चित ही तुम्हें नहीं
छोड़ेंगे। ऐसी स्थिति में द्वैतवन जाना उचित नहीं है। तब शकुनि ने
धृतराष्ट्र को समझाया कि हम केवल अपनी गायों की गिनती करने जा रहे हैं, हम
किसी तरह भी वहां नहीं जाएंगे, जहां पांडव निवास कर रहे हैं। शकुनि की बात
सुनकर महाराज धृतराष्ट्र मान गए और उन्होंने दुर्योधन को दल-बल सहित
द्वैतवन में जाने की आज्ञा दे दी।
9- महाराज धृतराष्ट्र की आज्ञा पाकर दुर्योधन बड़ी
भारी सेना लेकर द्वैतवन जाने के लिए चला। उसके साथ आठ हजार रथ, तीस हजार
हाथी और हजारों पैदल सैनिक भी थे। इस प्रकार जब सभी लोग द्वैतवन पहुंच गए
और डेरा लग गया। तब दुर्योधन ने अपनी असंख्य गौओं की गणना की और उन पर अपनी
निशानी डलवाई। इस काम से निपट कर दुर्योधन उस सरोवर के निकट पहुंचा, जहां
पांडव अपनी कुटिया बनाकर रह रहे थे। दुर्योधन ने अपने सेवकों को आदेश दिया
कि यहां एक क्रीड़ाभवन तैयार करो। दुर्योधन की आज्ञा से सेवक उस सरोवर पर
गए, लेकिन गंधर्वों ने उन्हें रोक दिया, क्योंकि वहां पहले से ही गंधर्वों
के राजा चित्रसेन जलक्रीड़ा करने अपने सेवकों और अप्सराओं के साथ आया हुआ
था।
दुर्योधन को जब यह बात पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने
गंधर्वों को वहां से भगाने के लिए अपने सैनिक भेजे। दुर्योधन के सैनिक और
साथी बलपूर्वक उस सरोवर की सीमा में घुस गए और गंधर्वों को मारने लगे।
गंधर्वों के स्वामी चित्रसेन को जब यह पता चला तो वह भी अपने सैनिकों के
साथ आकर युद्ध करने लगा। गंधर्वों और कौरवों में भीषण युद्ध हुआ। कर्ण आदि
महारथियों ने गंधर्वों को भयभीत कर दिया। यहां देखकर चित्रसेन को बहुत
क्रोध आया और उसने मायास्त्र चलाकर कौरवों को भ्रम में डाल दिया। इससे
कौरवों की सेना में भगदड़ मच गई। चित्रसेन ने दुर्योधन, दु:शासन आदि को
बंदी बना लिया।
10- जो कौरव सैनिक गंधर्वों से जान बचाकर भागे,
उन्होंने पांडवों की शरण ली और उन्हें पूरी बात बताई। यह बात सुनकर
युधिष्ठिर ने कहा कि इस समय ये लोग हमारी शरण में आए हैं, इनकी रक्षा करना
हमारा धर्म है। गंधर्व बलपूर्वक दुर्योधन को पकड़ कर ले गए हैं, उनके पास
हमारे कुल की स्त्रियां भी हैं। यह हमारे कुल का अपमान है।
तुम सब जाओ और दुर्योधन को छुड़ा लाओ। यदि गंधर्वराज न माने तो थोड़ा
पराक्रम दिखाकर दुर्योधन को छुड़ा लाना। युधिष्ठिर की बात सुनकर अर्जुन ने
प्रतिज्ञा की कि यदि गंधर्व हमारे समझाने पर भी नहीं माने तो आज हम उन्हें
नहीं छोड़ेंगे। ऐसा कहकर भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव दुर्योधन आदि को
छुड़ाने के लिए चल पड़े।
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11- गंधर्वों के पास पहुंचकर पांडव उनके सामने खड़े हो गए। उन्होंने
गंधर्वों को समझाते हुए कहा कि दुर्योधन को छोड़ दो। बहुत समझाने पर भी
गंधर्व नहीं माने तो भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव ने उन पर हमला कर दिया।
अर्जुन ने आग्नेयास्त्र छोड़कर हजारों गंधर्वों को मार दिया। गंधर्वों को
हारता देख गंधर्वराज चित्रसेन अर्जुन के पास आया और बोला कि वह पांडवों का
मित्र है। देवराज इंद्र ने ही उसे दुर्योधन को बंदी बनाने के लिए भेजा था,
क्योंकि वह अपना ऐश्वर्य दिखाकर तुम्हें जलाना चाहता था।
इसके बाद गंधर्वराज चित्रसेन धर्मराज युधिष्ठिर को पास आए और उन्हें
सब बातें बता दीं। युधिष्ठिर के कहने पर गंधर्वों ने दुर्योधन आदि सभी को
छोड़ दिया और पुन: स्वर्ग को चले गए। गंधर्वों के बंधन से मुक्त हुए
दुर्योधन से धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा कि कभी भी अधिक साहस नहीं करना
चाहिए। अब तुम सब भाइयों सहित अपने घर जाओ। इस घटना से मन में किसी प्रकार
का खेद मत मानना। धर्मराज के इस प्रकार आज्ञा देने पर दुर्योधन ने उन्हें
प्रणाम किया और अपमानित होकर अपने नगर की ओर चला गया। दुर्योधन को उस समय
अत्यंत ग्लानि का अनुभव हो रहा था-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
उज्जैन। महाभारत सीरीज-6 में अब तक आपने पढ़ा कि अर्जुन के
स्वर्ग जाने के बाद युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव और द्रौपदी विभिन्न
तीर्थों की यात्रा करते हुए बदरिकाश्रम पहुंच गए और वहीं रहने लगे। एक दिन
पांडवों के आश्रम में एक सुंदर कमल का फूल उड़ता हुआ आया। द्रौपदी ने
भीमसेन से ऐसे और फूल लाने के लिए कहा। भीमसेन कमल पुष्प की खोज में
गंधमादन पर्वत की ओर चल दिए। रास्ते में भीम को पवनपुत्र हनुमान ने दर्शन
दिए। उन्होंने भीम को वरदान दिया कि जब कौरवों और पांडवों में युद्ध होगा
तब वह अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठ जाएंगे और ऐसी भीषण गर्जना करेंगे कि
शत्रुओं के प्राण सूख जाएंगे और तब उन्हें आसानी से मारा जा सकेगा।
कमल पुष्प की खोज में भीमसेन कुबेरजी के राजमहल के पास स्थित सरोवर तक
पहुंच गए। जब भीमसेन उस सरोवर से फूल लेने लगे तो उस सरोवर के रक्षक यक्ष
और राक्षसों ने भीम पर हमला कर दिया। भीमसेन ने भी उन पर हमला कर उन्हें
पराजित कर दिया। पता चलने पर युधिष्ठिर आदि भाई भी वहां पहुंच गए। पांडव
आदि कुछ समय तक वहीं रुके और पुन: बदरिकाश्रम लौट आए।
महाभारत सीरीज 7 में पढ़िए पांडव जब काम्यक वन आए तो उनकी भेंट भगवान
श्रीकृष्ण से हुई। उनके साथ उनकी पत्नी सत्यभामा भी थी। सत्यभामा के पूछने
पर द्रौपदी ने अपनी दिनचर्या बताई और यह भी बताया कि वह किस प्रकार अपने
पांचों पतियों को प्रसन्न रखती है। द्रौपदी ने सत्यभामा को बताया कि पत्नी
को अपने पति के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, जिससे उनका मन सदैव पत्नी के
वश में रहे।
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