श्री गोपाल दोमोदर स्त्रोतम् || govind damodar stotra
श्री गोपाल दोमोदर स्त्रोतम्
करार विन्दे न पदार्विन्दं ,मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम
वटस्य पत्रस्य पुटेश्यानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि (1)
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी,हे नाथ नारायण वासुदेव
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव, गोविन्द दामोदर माधवेति (2)
विक्रेतु-कामा किल गोप-कन्या, मुरारि-पादार्पित-चित्त-वृत्तिः
दध्यादिकं मोहवशात् अवोचत्, गोविन्द दामोदर माधवेति (3)
गृहे गृहे गोप-वधू-कदम्बाः, सर्वे मिलित्वा समवाय-योगे
पण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं,गोविन्द दामोदर माधवेति (4)
सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि ष्णोः प्रवदन्ति मर्त्याः
ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति (5)
जिह्वे सदैव भजसुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि
समस्त-भक्तार्ति-विनाशनानि, गोविन्द दामोदरमाधवेति (6)
सुखावसाने तु इदमेव सारं, दुःखावसाने तु इदमेव गेयम्
देहावसाने तु इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति (7)
जिह्वे रसज्ञे मधुर-प्रियात्वं, सत्यं हितं त्वां परमं वदामि
आवर्णयेता मधुराक्षराणि, गोविन्द दामोदरमाधवेति (8)
त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे, समागते दण्ड-धरे कृतान्ते
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या, गोविन्द दामोदर माधवेति (9)
श्री कृष्ण राधावरगोकुलेश, गोपाल गोवर्धन-नाथ विष्णो
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव, गोविन्द दामोदरमाधवेति (10)
|| श्री गोविन्द-दामोदर-स्तोत्रं संपूर्णम् ।।
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आचार्य सोनू तिवारी जी
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करार विन्दे न पदार्विन्दं ,मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम
वटस्य पत्रस्य पुटेश्यानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि (1)
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी,हे नाथ नारायण वासुदेव
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव, गोविन्द दामोदर माधवेति (2)
विक्रेतु-कामा किल गोप-कन्या, मुरारि-पादार्पित-चित्त-वृत्तिः
दध्यादिकं मोहवशात् अवोचत्, गोविन्द दामोदर माधवेति (3)
गृहे गृहे गोप-वधू-कदम्बाः, सर्वे मिलित्वा समवाय-योगे
पण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं,गोविन्द दामोदर माधवेति (4)
सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि ष्णोः प्रवदन्ति मर्त्याः
ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति (5)
जिह्वे सदैव भजसुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि
समस्त-भक्तार्ति-विनाशनानि, गोविन्द दामोदरमाधवेति (6)
सुखावसाने तु इदमेव सारं, दुःखावसाने तु इदमेव गेयम्
देहावसाने तु इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति (7)
जिह्वे रसज्ञे मधुर-प्रियात्वं, सत्यं हितं त्वां परमं वदामि
आवर्णयेता मधुराक्षराणि, गोविन्द दामोदरमाधवेति (8)
त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे, समागते दण्ड-धरे कृतान्ते
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या, गोविन्द दामोदर माधवेति (9)
श्री कृष्ण राधावरगोकुलेश, गोपाल गोवर्धन-नाथ विष्णो
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव, गोविन्द दामोदरमाधवेति (10)
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पं सोनू तिवारी जी
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