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★★श्री राधा रानी कृपा-कटाक्ष समूह में आप भक्तो आपका स्वागत ...... सभी देश वासिओ को होली की बहुत बहुत शुभकामनाए


आदर्श कहानी ( Adarsh kahaniya )


 4  इस तरह से उसके कमाये गये तीनों वर बेकार हो गये

बहुत समय पहले की बात है। देवताओं ने एक व्यक्ति की प्रार्थनाओं से परेशान होकर मुख्य देवता से कहा,” देव, यह व्यक्ति बिल्कुल भी वर देने योग्य नहीं है परंतु यह लगातार प्रार्थना कर रहा है सो अब इसे टाला भी नहीं जा सकता। इसके साथ दिक्कत यह है कि यह वर पाने के बाद उसका दुरुपयोग कर सकता है”। मुख्य देव ने कुछ देर प्रार्थनारत व्यक्ति के बारे में विचारा और कहा,” घबराने की बात नहीं है इसे वर दे दो”। देवताओं ने उस व्यक्ति से कुछ माँगने को कहा। व्यक्ति ने तीन इच्छायें पूरी करने के लिये वर देने की माँग की। देवताओं ने उसे अंडे जैसे नाजुक तीन गोले दे दिये और कहा,” जब भी तुम्हे अपनी इच्छा की पूर्ती करनी हो, एक गोले को जमीन पर गिराकर फोड़ देना और जो भी चाहो माँग लेना। तुम्हारी इच्छा पूरी हो जायेगी। ध्यान रखना कि एक गोला सिर्फ एक ही बार काम करेगा अतः सोच समझकर ही इन्हे उपयोग में लाना”। व्यक्ति को तो जैसे सारा जहाँ मिल गया वह खुशी और उत्साह से भागता हुआ घर पहुँचा। वह तुरंत अपने कमरे में जाकर वर माँगना चाहता था। वह कमरे में घुस ही रहा था कि उसका छोटा सा बेटा भागकर आया और उससे लिपट गया। इस अचानक हमले से व्यक्ति के हाथों का संतुलन बिगड़ गया और एक गोला नीचे गिर कर फूट गया। उसके क्रोध का ठिकाना न रहा और उसने क्रोधित होकर बेटे को डपटा,”तेरी आँखें नहीं हैं”। व इतना कहते ही उसके बेटे के चेहरे से दोनों आँखें गायब हो गयीं। व्यक्ति तो जैसे आसमान से गिरा। वह रोने लगा। उसे बाकी दोनों गोले याद आये। उसने एक और गोला अपने हाथ में लिया और आँखें बंद करके गोला जमीन पर गिराकर फोड़ दिया और माँगा,” मेरे बेटे के चेहरे पर आँखें लग जायें”। उसने आँखें खोलीं तो यह देखकर वह आश्चर्य और दुख से भर गया कि उसके बेटे के सारे चेहरे पर आँखें ही आँखें लग गयीं थीं और वह विचित्र लग रहा था। अब व्यक्ति को माँगने में गलती करने का अहसास होने लगा। मरता क्या न करता। उसने तीसरा गोला भी फोड़ा और माँगा कि उसके बेटे का चेहरा सामान्य हो जाये और पहले की तरह केवल दो ही आँखें सामान्य तरीके से उसके चेहरे पर रहें। इस तरह से उसके कमाये गये तीनों वर बेकार हो गये। पात्रता और वाणी का संयम दोनों बहुत महत्वपूर्ण बातें हैं जीवन में. 

3 जीवन का आनंद लेने के लिये कल का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं

एक बार एक मछुआरा समुद्र किनारे आराम से छांवमें शांति से बैठा था । अचानक एक बिजनैसमैन ( कंप्यूटर/ IT फील्ड वाला ) वहाँ से गुजरा और उसने मछुआरे से पूछा- "तुम काम करने के बजाय आराम क्यों फरमा रहे हो?" इस पर गरीब मछुआरे ने कहा, "मै आज के लिये पर्याप्त मछलियाँ पकड चुका हूँ ।" यह सुनकर बिज़नेसमैन गुस्सेमें आकर बोला, " यहाँ बैठकर समय बर्बाद करने से बेहतर है कि तुम क्यों ना और मछलियाँ पकडो ।" मछुआरे ने पूछा, "और मछलियाँ पकडने से क्या होगा?" बिज़नेसमैन : उन्हे बेंचकर तुम और ज्यादा पैसे कमा सकते हो और एक बडी बोट भी ले सकते हो । मछुआरा :- "उससे क्या होगा?" बिज़नेसमैन :- "उससे तुम समुद्र में और दूर तक जाकर और मछलियाँ पकड सकते हो और ज्यादा पैसे कमा सकते हो ।" मछुआरा :- "उससे क्या होगा?" बिज़नेसमैन : "तुम और अधिक बोट खरीद सकते हो और कर्मचारी रखकर और अधिक पैसे कमा सकते हो ।" मछुआरा : "उससे क्या होगा?" बिज़नेसमैन : "उससे तुम मेरी तरह अमीर बिज़नेसमैन बन जाओगे ।" मछुआरा :- "उससे क्या होगा?" बिज़नेसमैन : "अरे बेवकूफ, उसzसे तू अपना जीवन शांति से व्यतीत कर सकेगा ।" मछुआरा :- "तो आपको क्या लगता है, अभी मैं क्या कर रहा हूँ ?" बिज़नेसमैन निरुत्तर हो गया । मोरल – "जीवन का आनंद लेने के लिये कल का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं । और ना ही सुख और शांति के लिये और अधिक धनवान बनने की आवश्यकता है । जो इस क्षण है, वही जीवन है। "दिल से जियो" 
 जय श्री कृष्णा

 2  क्या गुज़री होगी उस बुढ़ी माँ के दिल पर

 क्या गुज़री होगी उस बुढ़ी माँ के दिल पर जब उसकी बहु ने कहा -: "माँ जी, आप अपना खाना बना लेना, मुझे और इन्हें आज एक पार्टी में जाना है.!!" बुढ़ी माँ ने कहा -: "बेटी मुझे गैस चुल्हा चलाना नहीं आता.!" तो बेटे ने कहा -: "माँ, पास वाले मंदिर में आज भंडारा है, तुम वहाँ चली जाओ खाना बनाने की कोई नौबत ही नहीं आयेगी.!" माँ चुपचाप अपनी चप्पल पहन कर मंदिर की ओर हो चली गयी यह पुरा वाक्या 10 साल का बेटा रोहन सुन रहा था | पार्टी में जाते वक्त रास्ते में रोहन ने अपने पापा से कहा -: "पापा, मैं जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ना तब मैं भी अपना घर किसी मंदिर के पास ही बनाऊंगा.!" माँ ने उत्सुकतावश पुछा -: "क्यों बेटा?" . रोहन ने जो जवाब दिया उसे सुनकर उस बेटे और बहु का सिर शर्म से नीचे झूक गया. रोहन ने कहा -: "क्योंकि माँ, जब मुझे भी किसी दिन ऐसी ही किसी पार्टी में जाना होगा तब तुम भी तो किसी मंदिर में भंडारे में खाना खाने जाओगी ना और मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कहीं दूर मंदिर में जाना पड़े.!" .. पत्थर तब तक सलामत है जब तक वो पर्वत से जुड़ा है. पत्ता तब तक सलामत है जब तक वो पेड़ से जुड़ा है. इंसान तब तक सलामत है जब तक वो परिवार से जुड़ा है क्योंकि परिवार से अलग होकर आज़ादी तो मिल जाती है लेकिन संस्कार चले जाते हैं... एक कब्र पर लिखा था... "किसी को क्या इलज़ाम दूं दोस्तो..., ज़िन्दगी में सताने वाले भी अपने थे, और दफनाने वाले भी अपने थे"..

 1 सत्य का मार्ग नहीं त्यागना चाहिए''

किसी जमाने में एक राजा था| वह बड़ा नेक था| अपनी प्रजा की भलाई के लिए प्रयत्न करता रहता था| उसने अपने राज्य में घोषणा करा दी थी कि शाम तक बाजार में किसी की कोईचीज न बचे, अगर बचेगी तो वह स्वयं उसे खरीद लेगा, इसलिए शाम को जो भी चीज बच जाती, वह उसे खरीद लेता| संयोग से एक दिन बाजारमें एक आदमी शनि की मूर्ति बेचने आया| शनिकी मूर्ति को भला अपनेघर में कौन रखता? किसी ने उसे नहीं खरीदा| अपने वचन के अनुसार शाम को राजा ने उसे खरीद लिया और अपने महलमें रख दिया| रात हुई राजा की आंखें लगी ही थीं कि अचानक उसके सामने एक मूर्ति आ खड़ी हुई| राजा ने पूछा - 'तुम कौन हो?" वह बोली - "राजन, मैं लक्ष्मी हूं| तुम्हारे राज्य से जा रही हूं, क्योंकि तुमने शनि को अपने यहां स्थान दे दिया है|' राजा ने कहा - 'मैंने अपने धर्म का पालन किया है| सत्य की रक्षा की है| तुम जाना ही चाहती हो तो चली जाओ|' उसके जाने के थोड़ी हीदेर बाद राजा की आंखोंके सामने एक दूसरी मूर्ति आई| राजा ने पूछा - 'तुम कौन हो?' वह मूर्ति बोली - "मैं धर्म हूं, मैं भी जा रहा हूं| जहां शनि वास करता है, मैं वहां नहीं रह सकता|' राजा ने उसे भी वही उत्तर दिया, जो उसने लक्ष्मी को दिया था| फिर तीसरी मूर्ति प्रकट हुई| राजा ने पूछा - 'तुम कौन हो?' उत्तर मिला - 'मैं सत्य हूं| तुमने शनि को आश्रय दिया है, इसलिए मैं जा रहा हूं|' राजा ने उसे पकड़ लियाऔर बोला - 'मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा| तुम्हारे लिए ही तो मैंने लक्ष्मी को छोड़ा, धर्म को छोड़ा अत: तुम नहीं जा सकते|' यह सुनकर सत्य चुप हो गया और वह नहीं गया| उसके रुकने पर लक्ष्मी और धर्म लौट आए| ''किसी भी परिस्थिति में सत्य का मार्ग नहीं त्यागना चाहिए'' 


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पं सोनू तिवारी जी

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